बिहार : जानिए क्यों ये बेबस मां लगा रही गुहार, ””भगवान उठा लो मेरे बेटे को””
डबुरा खुर्द के रहनेवाले शैलेश सिंह के बेटे को है लाइलाज बीमारी डाउंस सिड्रोम से पीड़ित बच्चे को लेकर दंपती लगा चुके हैं कई अस्पतालों के चक्कर औरंगाबाद कार्यालय : एक तरफ पूरे देश की माताएं अपने औलादों की सलामती के लिए जिमूतवाहन भगवान की आराधना करते हुए जिउतिया का पर्व की उपवास कर अपने-अपने […]
डबुरा खुर्द के रहनेवाले शैलेश सिंह के बेटे को है लाइलाज बीमारी
डाउंस सिड्रोम से पीड़ित बच्चे को लेकर दंपती लगा चुके हैं कई अस्पतालों के चक्कर
औरंगाबाद कार्यालय : एक तरफ पूरे देश की माताएं अपने औलादों की सलामती के लिए जिमूतवाहन भगवान की आराधना करते हुए जिउतिया का पर्व की उपवास कर अपने-अपने बेटों के लंबी उम्र की दुआ कर रही हैं, तो दूसरी ओर सदर अस्पताल औरंगाबाद में भी एक ऐसी अभागन मां पहुंची, जो उपवास रखते हुए भी बच्चे की उम्र की सलामती के लिए नहीं, बल्कि उसकी मौत की कामना कर रही थी.
ऐसा इसलिए, क्योंकि वह यह बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी कि उसका बेटा उसकी आंखों के सामने तिल-तिल कर अपना प्राण त्यागे. बात हो रही है डबुरा खुर्द के रहनेवाले शैलेश सिंह की पत्नी पूनम की जो पिछले नौ वर्षों से अपने बेटे को प्रतिदिन मरते हुए देख रही है. चिकित्सक बताते हैं कि उनका पुत्र लाइलाज बीमारी से ग्रसित है.
प्राप्त जानकारी के अनुसार शैलेश सिंह का 14 वर्षीय पुत्र अंकित कुमार जीवन और मौत के बीच झूल रहा है. उसके जीवित बचने की संभावना एकदम क्षीण है. बताया जा रहा है कि वह डाउंस सिंड्रोम नामक बीमारी से ग्रसित है.
अंकित जब चार वर्ष का था, तब उसके शरीर की ताकत धीरे-धीरे समाप्त हो रही थी और वह किसी तरह से अपने पैरों पर खड़ा हो पा रहा था. उसके पिता को जब यह एहसास हुआ कि शायद उनका पुत्र किसी गंभीर बीमारी से ग्रसित हो गया है, तो उन्होंने औरंगाबाद के बच्चा विशेषज्ञ चिकित्सक डाॅ पियूष रंजन से इलाज कराया.
इसके बाद वह लगातार अपने बेटे को लेकर कभी रांची, नारायणी सेवा संस्थान उदयपुर, एम्स दिल्ली, पतंजलि संस्थान, हरिद्वार का चक्कर लगा आये, लेकिन कहीं भी उसका सटीक इलाज नहीं हो पाया. आज वह हर जगह से थक-हार कर अपने घर चले आये हैं और सदर अस्पताल में अपने पुत्र को भरती कराये हैं, जो ऑक्सीजन के सहारे मौत से जंग जीतने की कोशिश में लगा हुआ है.
क्या है डाउंस सिंड्रोम
सदर अस्पताल के उपाधीक्षक डाॅ राजकुमार प्रसाद बताते हैं कि डाउंस सिंड्रोम एक आनुवंशिक या क्रोमोजोमजनित विकार है और ये एक जीवनपर्यंत स्थिति है, जो शरीर में क्रोमोजोम का एक अतिरिक्त जोड़ा बन जाने से होता है.
सामान्य रूप से शिशु 46 क्रोमोजोम्स के साथ पैदा होते हैं. 23 क्रोमोजोम का सेट अपनी मां से ग्रहण करते हैं. इतने ही क्रोमोजोम का सेट एक शिशु अपने पिता से भी प्राप्त करता है. डाउंस सिंड्रोम से पीड़ित शिशु में 21वें क्रोमोजोम की एक अतिरिक्त प्रति होती है, जिससे उसके शरीर में क्रोमोजोम्स की संख्या बढ़ कर 47 हो जाती है. यह आनुवंशिक तब्दीली, शारीरिक विकास और मस्तिष्क के विकास की गति को धीमा कर देती है, जो शिशु में बौद्धिक विकलांगता का कारण बनती है.
डाउंस सिंड्रोम के लक्षण
डाउंस सिंड्रोम से पीड़ित अधिकतर बच्चों की मांसपेशियां और जोड़ ढीले होते हैं. कई बच्चे इस बीमारी के साथ पैदा होते हैं. सामान्य बच्चों की तुलना में इन बच्चों में बुद्धि का स्तर काफी कम होता है. हर्ट सर्जरी, अलजाइमर, कैंसर, श्वसन समस्या आदि की चुनौतियों से डाउंस सिंड्रोमवाले बच्चों को जूझना पड़ता है. वैसे भारत में एक हजार बच्चों में एक बच्चा इस बीमारी से ग्रसित रहता है. डॉक्टरों की मानें, तो इस बीमारी से ग्रसित बच्चों की जीवन अवधि 25 वर्ष तक होती है. कुछ बच्चे ऐसे भी होते है जो 15 वर्ष तक पहुंचते-पहुंचते मौत के मुंह में समा जाते हैं.
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