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दिवाली को लेकर जगमगा उठा दुर्गापुर, सजावटी समानों से पटे बाजार

बिकने लगी गणेश लक्ष्मी की मूर्तियां एवं तस्वीरें दुर्गापुर : दीपावली को लेकर दुर्गापुर शहर जगमगा उठा है. लोगों ने घर को सजाने के लिए खरीदारी शुरू कर दी है. दीपावली के चलते बाजार में सजावटी सामान की भरमार हैं. सामान्य दीयों व मोमबत्तियों से थोड़ा अलग बाजार में मौजूद फ्लोिटंग कैंडल व हैंगिंग लैंप […]

बिकने लगी गणेश लक्ष्मी की मूर्तियां एवं तस्वीरें
दुर्गापुर : दीपावली को लेकर दुर्गापुर शहर जगमगा उठा है. लोगों ने घर को सजाने के लिए खरीदारी शुरू कर दी है. दीपावली के चलते बाजार में सजावटी सामान की भरमार हैं. सामान्य दीयों व मोमबत्तियों से थोड़ा अलग बाजार में मौजूद फ्लोिटंग कैंडल व हैंगिंग लैंप लोगों को काफी पसंद आ रहे हैं.
बाजारों में घर सजाने के लिये बिजली की लड़ियों की भी भरमार है. बेशक बाजार में सस्ती चाइनीज लड़ियां मौजूद हैं, लेिकन उन्हें टक्कर देने के लिए स्वदेशी लड़ियां 150 रुपये से लेकर 3000 रुपये तक की रेंज में उपलब्ध है. धनतेरस व दीपावली पर लोग फूलों से भी घर सजाते है. इसे लेकर फूलों के दामों में 10 से 20 रूपये तक उछाल आने की उम्मीद है. फूल व्यापारी मिंटू शर्मा ने बताया कि गेंदा का फूल 35 से 40 रुपये किलो बिक रहा है. इसके अलावा कोलकाता से आने वाले लड्डू के आकार के गेंदा के फूलों की मांग बढ़ गई है.
इसकी लड़ियां कोलकाता से ही बनकर आती हैं. 20 लड़ियों के एक सेट की कीमत करीब 500 रुपये तक पहुंचने की उम्मीद है. इसके अलावा सजावट के लिए प्रयोग होने वाली हरे पत्ते की लड़ियां 10 रूपये लड़ी के हिसाब से बिक रही है.
इधर, लोग अपने घरों तथा दुकानदार अपनी दुकानों की रंगाई-पुताई में जुट गये हैं. पर्व को लेकर बाजारों के दोनों तरफ चूना-पेन्ट की दुकानें सज गई हैं. लोगों द्वारा अपने घरों को आकर्षक लुक देने की होड़ मची है. साफ-सफाई के बाद लोग अपनों घरों पर रंग-बिरंगे बिजली के झालरों एवं नये-नये डिजाइन के चाइिनज बल्ब खरीदकर घरों को खूबसूरत ढंग से साज-सजावट कर रहे हैं.
ज्योति पर्व दीपावली एवं धनतेरस के दिन माता लक्ष्मी एवं गणेश की पूजा-अर्चना की परम्परा चली आ रही है. इसे लेकर स्थानीय बाजार में जगह-जगह गणेश-लक्ष्मी की मूर्ति एवं तस्वीरों की बिक्री होने लगी है. इस दौरान हनुमान जी समेत अन्य मूतियों की भी बिक्री की जा रही है. आभूषण दुकानों में चांदी से निर्मित लक्ष्मी-गणेश की मूर्ति बिक्री के लिए लायी गयी है. जहां हरेक रेंज में मूर्ति उपल्ब्ध है. इसके अलावा पीतल से निर्मित लक्ष्मी-गणेश की प्रतिमा भी बाजारों में मिल रही है.
मिट्टी बर्तन के पुश्तैनी धंधे को चलाना मुश्किल है कुम्हारों के लिए
बाजार में घटती जा रही है इनकी मांग आधुनिकता के कारण
सरकारी प्रतिबंध के बाद भी प्लास्टिक सामान बने है चुनौती
अंडाल. मोयरा कोलियरी प्राइमरी स्कूल के समक्ष मिट्टी से विभिन्न प्रकार के बर्तन, दीपक तथा कुल्लड़ बनाने वाले कुम्हार इन दिनों मुश्किल से अपना जीवन यापन कर रहे हैं.
प्रदीप पंडित, हलदर पंडित, दिनेश पंडित तथा रंजीत पंडित आदि ने बताया कि उनके परिवार में चार पुश्तों से मिट्टी के बर्तन एवं धार्मिक कार्यों में आने वाले विभिन्न प्रकार के मिट्टी के सामान बन रहे हैं. समय बीतता गया.
आधुनिक दौर आ गया. इसके कारण लोग मिट्टी के बने बर्तनों एवं सामानों से दूर जा रहे हैं. दीपावली के गिनती के ही दिन बचे हैं, पर अभी तक दीपों की बिक्री में खास इजाफा नहीं दिख रहा है. बाजार में इसकी मांग काफी कम हो गई है. इतना ही नहीं लोग मिट्टी के भाड़ चाय पीने में भी दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं. जबकि सरकार प्लास्टिक से बने कप से दूर रहने की सलाह दे रही है. प्लास्टिक से बने सामानों का व्यवहार न करने को कहा जा रहा है.
उनेहोंने कहा कि मेहनत से बनाये मिट्टी के बर्त्तनों की बिक्री न के बराबर है. 100 प्लास्टिक के छोटे कप की कीमत 11 रूपये है वही मिट्टी से बने भाड़ की कीमत 25 रूपये है. बड़े कप की कीमत प्लास्टिक में 28 रु पये है जबकि मिट्टी से बने भाड़ 40 रूपये में मिलते हैं.
उन्होंने कहा कि सरकार प्लास्टिक से बने किसी भी सामान को इस्तेमाल करने से रोकती है पर सरकार उस दुकान को बंद नहीं करती जहां से या प्लास्टिक का उत्पादन होता है सरकार पहले उन स्थानों को बंद करें जहां से इसका निर्माण होता है. मिट्टी के बर्तन बनाने वाले कारीगर अपने परिवार का गुजर बसर करने में सक्षम नहीं हो पा रहे हैं.

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