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क्या हम सभ्य समाज का हिस्सा हैं!

पुरुष-प्रधान समाज की दोहरी मानसिकता देखिए कि वह औरत की खरीद-फरोख्त के खिलाफ कभी एकजुट नहीं होता. लेकिन अपनी मर्जी से जीवन-साथी चुन रही लड़कियों से भिड़ने के लिए संगठन तैयार कर लेता है. उत्तर प्रदेश में ऑनर-किलिंग के नाम पर साल 2013 में 85 हत्याएं हुईं, वहीं बाकी देश में कुल 24. ‘एसोसिएशन फॉर […]

पुरुष-प्रधान समाज की दोहरी मानसिकता देखिए कि वह औरत की खरीद-फरोख्त के खिलाफ कभी एकजुट नहीं होता. लेकिन अपनी मर्जी से जीवन-साथी चुन रही लड़कियों से भिड़ने के लिए संगठन तैयार कर लेता है.

उत्तर प्रदेश में ऑनर-किलिंग के नाम पर साल 2013 में 85 हत्याएं हुईं, वहीं बाकी देश में कुल 24. ‘एसोसिएशन फॉर एड्वोकेसी एंड लीगल इनिशिएटिव’ के अनुसार उत्तर प्रदेश में इज्जत के नाम पर होनेवाली हत्याएं पूरे देश में सबसे अधिक हैं. जाति, गोत्र और धर्म के बिंदू प्रेम विवाह करनेवालों के लिए जहर की गोलियों का काम करते हैं. भारतीय समाज में इज्जत के लिए अपनी औलादों का कत्ल करनेवालों के प्रति सहानुभूति पायी जाती है, क्योंकि पुलिस-प्रशासन भी इसी समाज का हिस्सा है. सोचनेवाली बात यह है कि जिस जमीन पर नफरत की फसल जंगली पौधों की तरह खुद-ब-खुद उग जाती है, वहां ‘लव जेहाद’ की खाद का असर क्या होगा!

उत्तर प्रदेश में 2017 के विधानसभा चुनावों की नींव पड़नी शुरू हो गयी है. लोकसभा चुनावों में परचम फहराने के बाद भाजपा का अपनी हिंदुत्ववादी रणनीतियों पर भरोसा मजबूत हुआ है. यही वजह है कि वर्षो से सो रहे ‘लव जेहाद’ नामक ‘कुंभकरण’ को जगा दिया गया है. 13 सितंबर को उत्तर प्रदेश में होनेवाले उपचुनावों में इसी कुंभकरण का कद नापा जायेगा, ताकि 2017 तक पहुंचनेवाली सड़क तैयार की जा सके. हमेशा की तरह भाजपा ने बड़ी समझदारी से चिनगारी सुलगा कर किनारा करना शुरू कर दिया है और दक्षिणपंथी खेमा घी और हवा के साथ तैयार है. हाल ही में विश्व हिंदू परिषद्, हिंदू जागरण मंच, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् और भारतीय जनता युवा मोर्चा ने मिल कर मेरठ में ‘लव जेहाद’ से लड़ने के लिए ‘मेरठ बचाओ मंच’ बनाया है. माना जा रहा है कि ऐसे ही कदम मुरादाबाद, मुजफ्फरनगर, बरेली, बुलंदशहर, सहारनपुर और भगतपुर में भी उठाये जायेंगे. गौरतलब है कि दक्षिणी उत्तर प्रदेश के ये जिले सांप्रदायिक रूप से बेहद संवेदनशील हैं.

गोरखपुर से भाजपा के सांसद और उत्तर प्रदेश में पार्टी के स्टार प्रचारक योगी आदित्यनाथ ने हिंदुओं को प्रतिशोध लेने के लिए मुसलिम लड़कियों से शादी करने की बात कही. समझने की बात यह है कि क्या किसी की बीवी होना सजा है, जो शादी के बदले शादी से हिसाब बराबर होगा? समाज की कुरीतियों को खत्म करने के लिए अंतरजातीय विवाह के समर्थन में ये लोग क्यों कुछ नहीं बोलते. हमारे समाज के लिए यह यकीन करना हमेशा मुश्किल होता है कि बेटियां खुद अपनी मर्जी से घर छोड़ रही हैं. लड़कियों ने सोच-समझ कर फैसला लिया और अपना जीवन-साथी खुद चुना, बेहद बगावती ख्याल है! इससे बेहतर तो अपनी बहनों को बेवकूफ समझो कि उन्हें प्यार की दो बातें करके बरगलाया गया है. असल में बात हिंदू-मुसलिम की है ही नहीं, प्रेम-विवाह ही समाज की आंखों की किरकिरी है. जहां दूल्हे के गले में पड़ी नोटों की माला उसकी शान बढ़ाती हो, जहां दुल्हन की अहमियत उस पर लदे जेवर से तय होती हो, वहां शादी व्यापार है. पूरे व्यापार को जिंदा रखने के लिए व्यापारी छोटी-मोटी आहूतियों से कभी नहीं हिचकता. गौरतलब है कि जिन संस्कृतियों में लड़के वालों और लड़की वालों का रुतबा बराबर होता है, वहां प्रेम-विवाह को समाज का दुश्मन भी नहीं समझा जाता.

लव जेहाद का शगूफा पहली बार साल 2009 में छोड़ा गया था, जब कर्नाटक में एक हिंदू लड़की ने एक मुसलिम लड़के से घर के खिलाफ जाकर शादी कर ली थी. लड़की के घर वालों ने पुलिस में अपहरण का मामला दर्ज करवाया. क्लबों में घुस कर लड़कियों को पीटनेवाली श्रीराम सेना ने इस मुद्दे को भुनाने की खूब कोशिश की. बाद में लड़की ने अदालत के सामने अपनी मर्जी से शादी करने की बात रखी और वापस अपने पति के पास चली गयी. उस वक्त कर्नाटक पुलिस और सीबीआइ ने ‘लव जेहाद’ जैसे किसी भी संगठन के अस्तित्व से इनकार किया था.

भारत में राजनीति का स्तर इतना गिर गया है कि यहां महिला-तस्करी जैसे संगीन अपराध को भी राजनीतिक रंग दे दिया जाता है. ‘द एशिया फाउंडेशन’ के अनुसार, भारत में 90 प्रतिशत महिला-तस्करी अंतरराज्यीय होती है, जबकि दूसरे देशों में इसका उल्टा है. पुरुष-प्रधान समाज की दोहरी मानसिकता देखिए कि वह औरत की खरीद-फरोख्त के खिलाफ कभी एकजुट नहीं होता. लेकिन अपनी मर्जी से जीवन-साथी चुन रही लड़कियों से भिड़ने के लिए संगठन तैयार कर लेता है. जिस समाज की मान्यता ही ऐसी हो कि लड़की सिर्फ एक वस्तु है, उसका कोई वजूद नहीं है, उसकी कोई मर्जी नहीं है, वहां उसके फैसले को इज्जत क्यों मिलेगी? जाहिर है, वहां उसे नासमझ ही समझा जायेगा.

जो संगठन जनता को असली मुद्दों से भटका कर, अपने संगठनों का समय और ऊर्जा ‘कॉन्सपिरेसी थ्योरी’ (षड्यंत्र सिद्धांत) पर खर्च करते हैं, ‘लड़की के बदले लड़की’ जैसी घटिया सोच को समर्थन देते हैं, सभ्य-समाज में उनकी कोई जगह नहीं होती. मगर फिर सवाल तो यही है कि सचमुच, क्या हम सभ्य-समाज का हिस्सा हैं?

फौजिया रियाज

स्वतंत्र पत्रकार

fauziya.reyaz08@gmail.com

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