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राजनीतिक अव्यावहारिकता का संकट

ओम थानवी वरिष्ठ पत्रकार दिल्ली में पिछले कुछ दिनों से जो राजनीतिक उथल-पुथल मची हुई है, खास तौर से आम आदमी पार्टी के अंदर जो बिखराव की स्थिति बनती दिख रही है, उसे लेकर जरूर कुछ मुश्किलें खड़ी हुई हैं. हालांकि, मेरा मानना है कि अरविंद केजरीवाल एक अच्छे नेता हैं और उनका काम अच्छा […]

ओम थानवी

वरिष्ठ पत्रकार

दिल्ली में पिछले कुछ दिनों से जो राजनीतिक उथल-पुथल मची हुई है, खास तौर से आम आदमी पार्टी के अंदर जो बिखराव की स्थिति बनती दिख रही है, उसे लेकर जरूर कुछ मुश्किलें खड़ी हुई हैं. हालांकि, मेरा मानना है कि अरविंद केजरीवाल एक अच्छे नेता हैं और उनका काम अच्छा है, लेकिन पार्टी चलाना एक काम है और सरकार चलाना एक दूसरा काम होता है. इस ऐतबार से संगठन के स्तर पर अरविंद केजरीवाल ने कितना समझौता किया है, यह तो अभी साफ नहीं हो पाया है, लेकिन स्टिंग टेप के जरिये जितनी भी बातचीत हमारे सामने आयी है, वह आप की नयी राजनीति के लिए एक चिंतनीय बात है.

अगर जारी हुए टेप सही साबित होते हैं, तो उसमें दर्ज केजरीवाल की आवाज को सुन कर न सिर्फ आप के नेताओं-कार्यकर्ताओं को धक्का लगेगा, बल्कि पूरे देश में इसका एक गलत संदेश जायेगा, क्योंकि इस पूरे मामले पर केजरीवाल ने अभी तक कुछ भी नहीं कहा है. हो सकता है कि लोग केजरीवाल की चुप्पी को गलत समझें, इसलिए जब तक रिकॉर्डिंग की जांच नहीं हो जाती है और असलियत सामने नहीं आ जाती है, तब तक किसी पर कोई आरोप लगाना बहुत ही गलत बात होगी.

योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण का पीएसी से हटाया जाना थोड़ा विचलित करता है, लेकिन उसके बाद एक चिट्ठी के जरिये उठाये गये उनके सवाल पार्टी के आंतरिक लोकतंत्र को प्रदर्शित करते हैं. जब भी कोई पार्टी का व्यक्ति कोई सांगठनिक खामियों को लेकर कोई सवाल उठाता है कि आप किसे टिकट दें या आप किससे चंदा लें, तो मेरा मानना है कि वह पार्टी के बाकी सदस्यों का सबसे अच्छा दोस्त होता है. पार्टी को चाहिए कि सवाल उठानेवाले ऐसे लोगों की बातों पर ध्यान दें, क्योंकि उन्होंने पार्टी से ही सवाल पूछे हैं, न कि किसी बाहरी व्यक्ति से या किसी पत्रकार से कोई बात कही है.

इसलिए चाहे वह राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक हो, पीएसी की बैठक हो या कोई सांगठनिक बैठक हो, उसे खुला कर देना चाहिए, इस राजनीतिक मजबूती के साथ कि हमारे यहां कुछ भी छुपाने के लिए नहीं है. आप की नयी राजनीति के लिए यह करना कोई मुश्किल काम नहीं है, क्योंकि ऐसी चीजें ही तो इस पार्टी की बुनियाद में शामिल हैं. इसलिए लोग इस पार्टी पर भरोसा करते हैं. शायद यही कारण भी था कि दिल्ली में आप को इतनी भारी जीत मिली थी.

अगर इस स्थिति में पार्टी के कुछ लोग दूसरे लोगों को संदेह के घेरे में खड़ा करने की कोशिश की और आप ने उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया, तो यह आप पार्टी के मूल्यों के खिलाफ जाकर काम किया गया. नयी राजनीति की वकालत करनेवाले लोगों को ऐसा नहीं करना चाहिए था. अगर किसी ने कोई गलती की है, तो उसे एक बैठक में बुला कर उससे बात कर सकते हैं और पूरी जानकारी से अवगत होने के बाद ही कोई फैसला ले सकते हैं, न कि उसे पार्टी से बाहर निकालने के बारे में सोचते हैं.

इस पूरे मामले को लेकर कुछ लोग आप पार्टी की राजनीतिक अपरिपक्वता मान रहे हैं, लेकिन मैं समझता हूं कि ह्यराजनीतिक अपरिपक्वताह्ण एक कड़ा शब्द है. लेकिन, मैं इसे ह्यराजनीतिक अव्यावहारिकताह्ण जरूर कहूंगा, जिसके कारण से पार्टी में कुछ चीजों को लेकर जल्दबाजी देखने को मिल रही है. लेकिन इन सबसे भी बुरी चीज यह सामने आ रही है कि जो केजरीवाल हमेशा मुखर रहे हैं, वे चुप हैं. यह तो सभी जानते हैं कि केजरीवाल से जो भी सवाल पूछा जाता है, उसका वे फौरन जवाब देते हैं और बड़ी बेबाकी से जवाब देते हैं. वे कभी किसी चीज से बचते नहीं थे. जो कोई भी उनसे किसी भी तरह की बात करने गया, उन्होंने उसका मुखरता से सामना किया और मुस्कुराते हुए किया. लेकिन इस मामले में वे जिस तरह से परदे के पीछे बैठे रहे और तमाम राजनीतिक गतिविधियां चलती रहीं, दो लोगों को पीएसी से निकाल दिया गया और वे चुप रहे, तो ऐसे में उनकी चुप्पी दिल्ली और देश के लिए थोड़ी सकते में डालनेवाली लगती है.

इससे पार्टी के कार्यकर्ताओं और दूसरे सभी लोगों में एक प्रकार की बेचैनी पैदा हो गयी, जिससे पार्टी को थोड़ा सा धक्का लगा है. केजरीवाल पार्टी के संयोजक हैं, अध्यक्ष हैं और मुख्यमंत्री भी हैं, इसलिए वे चुप नहीं रह सकते. उन्हें हर छोटे-बड़े मामले पर अपनी राय रखनी होगी और लोगों को विश्वास में लाना होगा. अगर आप को लगता है कि पार्टी में कुछ बुरे लोग हैं, तो उन्हें बुला कर बाकायदा उनसे बात कर यह कहना चाहिए कि वे अपना बोरिया-बिस्तर बांध लें. ऐसी राजनीति तो देश में बहुत पहले से चलती चली आ रही है.

लोकतंत्र में और लोकतांत्रिक राजनीति में मुखर होकर सवाल खड़े करनेवाले की इज्जत होनी चाहिए. अगर आप उन्हें बेइज्जत करेंगे, तो लोग सवाल खड़े करना बंद कर देंगे. ऐसे में आप को सुकून तो मिल जायेगा, लेकिन फिर आप पारंपरिक राजनीति को तोड़ कर नयी राजनीति की वकालत नहीं कर सकते, क्योंकि आप भी उसी परंपरा को निभाने की कोशिश कर रहे हैं. सवाल इस बात का नहीं है कि हर कोई आदमी आप पर सवाल उठा रहा है, बल्कि वे लोग सवाल उठा रहे हैं, जिन्होंने पार्टी को खड़ा करने में अपना बहुमूल्य योगदान दिया है और वे बड़े ही सोचने-समझनेवाले बुद्धिजीवी लोग हैं, इनके सवाल को गंभीरता से लेते हुए आप को सोचना चाहिए.

मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूं कि मौजूदा राजनीति में इतने पढ़े-लिखे लोग नहीं मिलते हैं. इन्हें बचाये रखने की जिम्मेवारी पार्टी को उठानी चाहिए. आप के पास जो भी दो-चार अच्छे लोग हैं, आप को चाहिए कि वह उन्हें संभाल कर रखे. हो सकता है कि उनसे कुछ लोगों को बेचैनी हो, लेकिन यह बेचैनी उन्हीं लोगों को ज्यादा होगी, जो कल ही राजनीति में आये हैं. अगर यह राजनीतिक उथल-पुथल नहीं थमा, तो अरविंद केजरीवाल की स्वीकार्यता में कमी आ जायेगी.

(वसीम अकरम से बातचीत पर आधारित)

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